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Monday, March 28, 2011

ग्राम पंचायत सोडा



ग्राम पंचायत सोडा
क्या आप यकीन करेंगे कि आज वह लडकी अपने गांव की सरपंच हैं, जिसने चित्तूर (आंध्र प्रदेश) के ऋषिवैली स्कूल से दसवीं तक पढाई की और मेयो कॉलेज, अजमेर में भी अध्ययन किया। इसके बाद दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और फिर पुणे से एमबीए करने के बाद पत्रकार के रूप में नौकरी की....
गांव की चौपाल पर बैठी किसी महिला सरपंच की आपकी कल्पना से इतर हैं छवि राजावत। राजस्थान के टोंक जिले में मालपुरा का एक छोटा सा गांव है सोडा। इस छोटे और अनजाने से गांव से मात्र ढाई महीने पहले सरपंच बनी छवि राजावत अन्य महिला सरपंचों से कई मायनों में वाकई अलग हैं। वे अपने गांव और गांव की बुनियादी समस्याओं को लेकर जानकारी, समझ और संवेदना तीनों के स्तर पर बहुत सजग और सक्रिय हैं। चौपाल और ग्राम सभाओं में चटख रंग के पारंपरिक पहनावे लहंगा-ओढनी पहने बैठी महिला सरपंच की जगह आप पाते हैं- जींस-टॉप वाले आधुनिक पहनावे और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली एक मॉडर्न सरपंच। लेकिन यह पहनावा और भाषा उनके और गांववासियों के बीच संवाद में कभी बाधा नहीं बना। वे कहती हैं, 'गांव में होने के बावजूद मेरे पहनावे ने मेरे लिए मुश्किल खडी नहीं की क्योंकि मैं इस गांव की बेटी हूं।
हां, अगर मैं यहां की बहू होती तो बात कुछ और हो सकती थी, तब मुझे अपने कपडों पर ध्यान देना पडता।Ó उच्च शिक्षित छवि ने एमबीए करने के बाद अखबार और एक टेलीकॉम कंपनी में काम किया। बाद में अपने परिवार के ही होटल व्यवसाय में मां को मदद की। छवि बताती हैं, सरपंच बनने के बाद अब अपने लिए समय कम ही मिल पाता है। गांव में होती हूं तो रोजाना सुबह सात बजे से गांव वालों से मुलाकात और तालाब पर खुदाई के कामों के बीच कब समय बीत जाता है, पता ही नहीं चलता।
ख्वाब छोटा सा
पानी की कमी से जूझ रहे गांववासियों को पीने का पानी मुहैया कराना उनकी पहली प्राथमिकता है और इसे दिशा में वे सार्थक प्रयास करती नजर आती हैं। गांव के रीते पडे तालाब को लेकर परेशान छवि का पहला प्रयास है कि कैसे भी करके मानसून से पहले उसकी खुदाई पूरी करा ली जाए ताकि बारिश का पानी सहेजा जा सके। करीब डेढ सौ बीघा में फैला तालाब मिट्टी भरने की वजह से समतल हो चुका है। हैरानी की बात है कि इसके लिए यह युवा सरपंच फावडे और पराती लेकर खुद मैदान में उतर आई हैं। उनके हौसले गांव की महिलाओं को प्रेरित करते हैं, वे उनका साथ देने के लिए घर से निकल श्रमदान के लिए आगे आई हैं।
ग्राम पंचायत सोडा

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